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मंगलवार, 26 जुलाई 2011

विकल्प हैं - उन्हें खोजें !

मेरी कल की पोस्ट "कल का सच - जो आज देखा" आज की एक समस्या है, जिसे आम तौर परहम कल झेलेंगे क्योंकि ये आज की पीढ़ी है जिसमें से सभी तो नहीं लेकिन कुछ तो हैं जो बिल्कुल ऐसे ही बच्चों केलिए विकल्प खोज कर अपने काम को कर रही हैंइसके विकल्प नहीं है ऐसा नहीं है - विकल्प हैं लेकिन हम उसकोअब महसूस करने के लिए तैयार नहीं हैहमारी प्राचीन संस्कृति ऐसे ही नहीं परिवार संस्था को अस्तित्व में रखे हैबच्चे आज भी अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते हैंकई बार तो अपने भविष्य को दांव पर लगा कर माता पिता केलिए नौकरी चुन लेते हैं
संयुक्त परिवार - आज संयुक्त परिवार की परिभाषा लम्बे चौड़े परिवार की नहीं रह गयी है बल्कि घर में बच्चों के दादादादी को ही शामिल कर लिया जाय तो वह संयुक्त हो जाता हैचाचा और बुआ अगर अविवाहित हैं तो इसमें जातेहैंफिर होने को तो कई भाई एक साथ एक व्यवसाय में लग कर उसको चलाते रहते हैंबात हम सिर्फ नौकरी पेशामाता पिता की कर रहे हैंआप की ये कोशिश होनी चाहिए की अगर संभव है तो बच्चे को दादा दादी के पास ही छोड़ेंअगर आप शहर में ही अलग रह रहे हैं तो भी वह अपने पोते को रखने से इंकार नहीं करेंगेलेकिन अपनी सोच किमेरा बच्चा दादा दादी के पास बिगड़ जाएगा उसको वे अपने तरीके से सिखायेंगे ( आप उसको कुछ और सीखना चाहती हों) लेकिन वह वहाँ सुरक्षित और प्यार के बीच रहेगाआपके दूर रहने पर भी उसे प्यार से वंचित नहीं होनापड़ेगा
कितनी बहुएँ हैं जो बच्चो को कृच में छोड़ना पसंद करती हैं और दादा दादी तरसते रहते हैंउस समय आप ही दोषी हैं , बच्चे के उस सवाल के कि पैसे से प्यार नहीं मिलता है
पाश्चात्य संस्कृति - दोनों कामकाजी लोग अपने जीवन स्तर को अलग ढंग से बनाने के पक्षधर भी देखे गए हैंवो दोनों नौकरी कर रहे हैं एक बेहतर जीवन जीने के लिए लेकिन अपने जीवन का सुख खोने के लिए नहीं
'अब तुम बड़े हो गए हो , अपने कमरे में सोओ।'
'मम्मी सारे दिन काम करती है रात में तो उसे चैन लेने दिया करो।'
'प्लीज इस समय मुझसे कुछ मत बोलो, मैं अकेले रहना चाहती हूँ।'
'तुम जाओ दोस्तों के संग खेलो , मुझे परेशान मत करो।'
ये आम जुमले हैं, मैं मानती हूँ कि आप दिन भर में थक कर आती हैं लेकिन वह बच्चा भी तोदिन भर अकेले रहता है और चाहता है कि कब मम्मी आये और वह उसके साथ बैठेउसकी गोद में खेलेउससे आपअपनी थकान या परेशानी की आड़ में उनका प्यार तो नहीं छीन रहीं हैअगर परिवार बनाया है तो अतिरिक्तदायित्वों और परिश्रम आपकी नियति बन चुकी हैफिर अपनी झुंझलाहट आप बच्चे पर निकलें तो वह खुदबखुद दूरहो जायेगा
उसे भी समय चाहिए और आप आकर कुछ देर के लिए उसे गोद में लेकर प्यार कर लें आप कोआराम करना है तो उसको लेकर बेड पर लेट जाइए उसे भी लिटा लीजियेदेखिये उसके सानिंध्य में आप की थकानकितनी जल्दी उतर जाती है वह कितना खुश हों जाता है? ये आपसे जोड़ने का एक तरीका हैदिन भर वह अलगरहता है तो उसके लिए माँ एक नियामत होती है
अपनी पार्टी ये चीज तो कामकाजी ही नहीं बड़े घरों की महिलाओं के लिए एक मनोरंजन का साधनहोता है , के लिए बच्चों को छोड़ देना अकलमंदी नहीं हैउन्हें बड़ा होने का इन्तजार कीजिये और अपने बच्चे केमनोविज्ञान का भी आपको ज्ञान होना चाहिए कुछ बच्चे अतिसंवेदनशील होते हैं उनको दूसरे ढंग से देखना पड़ता हैउनके साथ बातचीत की भाषा और लहजा भी उनको आहत कर सकता है तो एक माता पिता होने के नाते इस बात काध्यान तो जरूर रखेंउन्हें ये अहसास होने दें कि वे पता नहीं क्यों उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए जाते हैंबाल मनउस कच्ची मिट्टी की तरह होता है की जिस पर एक बार जो छाप बन गयी तो फिर जीवन भर नहीं मिट पाती है
कामकाजी होने के साथ बच्चों को पर्याप्त समय देंछुट्टी में उन्हें उनकी तरह से जीने का हक़दीजियेआप रोज निकलती हैं तो आप को लगेगा की एक छुट्टी का दिन मिला है तो आराम कर लें लेकिन वे रोजएक ही जीवन जीते हाँ या घर में रहते हैं या फिर क्रच में - उन्हें भी तो चेंज चाहिए और फिर ऐसे क्षणों में वे अपनेआप को आपके बहुत करीब पाते हैं
अगर कर सकती हों और आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़े तो कुछ सालों का आप ब्रेक भी लेसकती हैं और फिर दुबारा जॉब शुरू कर सकती हैं और नहीं संभव है तो फिर कोशिश ये करें कि बच्चे माँ की कमीदूसरे लोगों या फिर बेजान खिलौने में खोजने के लिए मजबूर होंऐसे बच्चों को दूसरे लोग बरगला भी लेते हैं औरउनको गलत रास्ते पर भी ले जाने से नहीं चूकते हैं
जिनके भविष्य के लिए आप इतना परिश्रम कर रहे हैं और कल को वो आपको ही कटघरे में खड़ाकरके सवाल पूछे तो फिर आपकी सारी मेहनत और प्रयास असफल हों जाता हैबच्चों को दूर करेंयथासंभवउन्हें अपने करीब रखेंजब उनकी उम्र दूर जाने की होती है तो फिर तो वे दूर चले ही जाते हैं
बच्चों को कभी भी प्रताड़ित करने के लिए उन्हें ऐसे कहें -
'बहुत परेशान करोगे तो होस्टल में डाल दूँगा।'
'एक ही शहर में रहते हुए उन्हें होस्टल में यथासंभव डालें।'
'घर की छत के नीचे जो सुख प्यार है वह कहीं और नसीब नहीं होता, इस बात का अहसासे आप भी करें औरउन्हें भी करने देंप्यार देंगे तो प्यार मिलेगा - दूरियां बनायेंगे तो फिर प्यार की आशा कैसे कर सकते हैं? वे वहीसीखते हैं जो हम उनको सिखाते हैं या बातें सिर्फ बोल कर ही नहीं सिखाई जाती है बल्कि इसको तो वे हमारे व्यवहार से भी सीख जाते हैं

कल का सच - जो आज देखा !

मैंने एक कहानी पढ़ी - लिखने वाला एक युवा लेखक लेकिन उसने जो भी लिखा इतना यथार्थथा कि खुद मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब कल यही उत्तर मिलने वाला हैकहानी में एक युवा पुत्र नेअपने माता - पिता को एक पत्र लिखा था, उनके इस बात की दुहाई देने के लिए कि मुझे तुम्हारी अब जरूरत है , मेरे पास पैसा बहुत है और विदेश से नौकरी छोड़ कर यहाँ जाओ
लिखने वाले की कलम की धार देखने काबिल थी, जो जो तथ्य उसने प्रस्तुत किये उससे उसनेअपने ही माता पिता को कटघरे में खड़ा कर दिया जिसके लिए कोई सफाई मैं पेश कर सकती हूँ और वह माँबाप कर पाए होंगेवह भावी पीढ़ी के लिए एक कटु सत्य है और उसको झेलना ही होगाआज की पीढ़ी जो जीवनस्तर, आधुनिक सुख सुविधाओं और सोसायटी में अपनी जगह बनाने के लिए जिस तरह से भाग रही है औरजीवन को एन्जॉय करना चाह रही है , उसके लिए बहुत कुछ खो भी रही है
अगर हम अपनी पीढ़ी की बात करें तो हमारी कामकाजी होने के बाद भी अपने मध्यमवर्गीयपारिवारिक मूल्यों का वहन करती रहीकाम के बाद बच्चों को अपने सीने से लगाकर सुलाया हैघर पर नहीं रहीतब भी आया के आँचल में नहीं दियासंयुक्त परिवार के परिवेश में जियाइसके लिए हमने अपने तन, मन औरधन तीनों से कीमत भी चुकाई लेकिन बच्चों के लिए 'घर' का अर्थ 'घर ' ही रहने दियामाँ नहीं है तो बाबा दादी हैं , ताई या चाची हैंउनको खाना निकाल कर तो दियास्कूल से आने पर अपने पास सुला तो लियानहीं तो अपनेभाई बहनों के संग सुरक्षित घर के माहौल में बच्चे रहे
आज के बच्चे भी वही दिल लेकर पैदा होते हैं और उनके दिल भी हमारे बच्चों के तरह से ही धड़कतेहैंवे भी चाहते हैं कि कुछ पल माँ के साए में गुजरेंममता के अर्थ नहीं बदल जाते - हमारी सोच ने उसे बदलदिया हैआज की युवा पीढ़ी अर्थ के पीछे दौड़ रही हैअधिक से अधिक कामना और सुख सुविधाओं को जुटानायद्यपि वह ये सब सिर्फ अपने लिए नहीं कर रही है बल्कि बच्चों के लिए भी कर रही हैप्रतिस्पर्धा के इस दौर मेंअच्छे स्कूल में पढ़ाना , आधुनिक जीवन मूल्यों के अनुसार बच्चों के अलग बेडरूम को अच्छे से सजाना औरउनके जरा सा बड़ा होते ही अलग कमरे में डाल देनाचाहे बच्चा रात में डर के मारे सो पाए लेकिन उसे पाश्चात्यसंस्कृति के अनुसार जीना हैफिर हम भारतीयता कि दुहाई क्यों देने लगते हैं?
नौकरी के चलते छुट्टी के ख़त्म होते ही बच्चे को डे केयर सेंटर में छोड़ना होता है क्योंकि घर मेंकिसी को रहना नहीं होता है और आया के सहारे छोड़ने से अच्छा है कि बच्चा कई बच्चों के साथ रहेसुबह जबबच्चा सोना चाहता है तब ऑफिस जाने की जल्दी में जल्दी से बच्चे को कभी कभी तो फ्रेश कराये बिना ही सेंटर मेंछोड़ दिया जाता है और बच्चा कई बार रोता रह जाता हैबच्चे को आया को पकड़ा कर माँ चल देती है. ये माँ केलिए मजबूरी ही सही लेकिन बच्चे के दिल में माँ के प्रति पलने वाला प्यार कहीं खोने लगता हैवह उसके पासरहता ही कितना है? माँ बाप को लगता है कि बच्चे को अच्छे से अच्छा मुहैया करवा रहे हैं तो उसको कोई भीशिकायत नहीं होनी चाहिएलेकिन अगर माँ का आँचल और बाप का साया ही मिला तो बच्चा निर्जीव चीजों केसाथ दोस्ती कर अपने संवेदनाओं को उनके साथ ही जोड़ लेता है और फिर अगर माँ उसके खिलौने कहीं उठा कररख भी दे तो वह रो रो कर उनकी मांग करता है तब उसको माँ नहीं अपने लिए वही जरूरी लगने लगते हैं
रात में कभी कभी माँ पापा को पार्टी में जाना होता है और वे बच्चे को घर में बंद करके चल देते हैंक्योंकि पार्टी की औपचारिकता के अनुसार बच्चे वहाँ नहीं ले जा पाते हैंएक वह अवसर भी बच्चों के सानिंध्य का छिन जाता हैउस नन्हे से मन की आत्मा कितनी आहत हुई ये हम नहीं समझ पाते हैं
-हम बढ़िया से बढ़िया सामान मुहैया कराते हैं , हम कमाते किसके लिए हैं? इन्हीं बच्चों के लिए
-तुम्हारे किसी और दोस्त के पास हैं इतनी सारे खिलौने या फिर ऐसे समान - शायद नहीं लेकिन उनके पास कुछऔर होता है जो उसके पास नहीं होता है
अगर कहें कि ये उनकी मजबूरी होती है , दोनों कमायें तो खर्च कैसे उठायें? जीवन स्तर अच्छाकैसे बनायें? अपने फ्रेंड सर्किल में अपनी प्रतिष्ठा कैसे बना पायेंगे? पर इसकी कीमत बाल मन चुका रहा होता हैजब उसको माता पिता का प्यार नहीं मिला तो उसके मन में उनके प्रति प्यार कहाँ से आएगा? लगाव कैसे होगा?
बच्चे थोड़े से बड़े होते हैं , टी वी, कंप्यूटर, आई पोड से सुसज्जित कर दिए जाते हैं और फिर उन्हें किसी की जरूरतभी नहीं रहती हैअपने नेट से बनाये फ्रेंड सर्किल और अपनी बातें शेयर करने के लिए उनके पास बहुत से विकल्प जाते हैं फिर उन्हें किसी की जरूरत भी नहीं होती हैहोस्टल, अपनी पढ़ाई और फिर कैरियर के लिए कोशिशकरना उनको और अधिक दूर कर लेता है
अब कहीं उनके लिए अपनी मित्र मंडली ही सबसे बड़ी सहारा और दिशा देने वाली होती हैजॉबलगने पर छुट्टियों में वे घर आने कि बजाय घूमने के लिए निकल जाना अधिक पसंद करते हैंक्योंकि उनकोलगता है घर जाने पर कोई दोस्त तो मिलेगा नहीं घर में रहकर करेंगे क्या? इसलिए बेहतर है कि टूरिस्ट प्लेस परजाकर छुट्टियाँ बिता आते हैं
जब उन्हें हमारे साथ की जरूरत थी हम पैसे के पीछे भागते रहे और साथ ही अपनी सोसायटी मेंजगह बनाने के लिए हमारी गतिविधियाँ भी जारी रहनी चाहिए थी उसमें बच्चों के लिए कोई जगह नहीं थीअबबच्चों के दिल में हमारे लिए कोई जगह नहीं हैउस बच्चे का एक उत्तर बहुत अच्छा लगा था। 'पापा पैसा आजमेरे पास भी बहुत है लेकिन इस पैसे से प्यार नहीं मिलताजैसे आपने मेरे लिए सारी आधुनिक सुविधाएँ खरीदकर घर में कैद कर दिया थामैं आप लोगों को और पैसे भेज देता हूँजो आपको चाहिए हो लेटेस्ट फैशन का लेलीजियेलेकिन हमारे पास वह प्यार है ही नहीं हो हमें आपसे जोड़ सकेमार्था ने नौकरी छोड़ दी है क्योंकि वहअपने बच्चे को अधिक महत्वपूर्ण समझती हैपापा वह तो विदेशी है लेकिन उसके अन्दर ममता और प्यार दोनोंही हैये प्यार हम बच्चे को किसी भी कीमत पर खरीद कर नहीं दे सकते हैंहम तो आपको वही दे सकते हैं जोआपने हमें दियाहम कहाँ से लायें जो हमें आपसे मिला ही नहींआशा करता हूँ कि आप मुझे क्षमा कर देंगे। '
आने वाली पीढ़ी को दोष किस बिला पर देंअगर बच्चा माँ के आँचल की गर्मी महसूस नहीं कर सकातो फिर आज वह कशिश कहाँ से लाएगा? अभी समय है हमें इसके विकल्प खोज लेने चाहिए और सोचना चाहिएकि अगर हमें आज ये उत्तर मिल रहा है तो फिर हमने अपने माता पिता को तो आँचल की छाँव में पालने के बाद भीकुछ नहीं दिया

सोमवार, 18 जुलाई 2011

खुद भी सुसंस्कृत बनें !

वैसे तो माँ - बाप के लिए जैसे ही किसी नए मेहमान के आने की बात सामने आती है , वे उसके भविष्य के लिए उसके नामकारण, शिक्षा और संस्कारों के लिए सपने बुनने लगते हैं (अपवाद इसके भी हो सकते हैं.) . जब वह दुनियाँ में आ जाता है तो फिर वह उसके इर्द गिर्द अपने जीवन को समेट लेते हैं. फिर मुँह से पहले शब्द के निकलने के साथ ही उसको अपने अनुसार ही शब्दों को सुनने के लिए लालायित रहते हैं. लेकिन ये पेरेंटिंग की जरूरत बच्चों को जितनी जरूरी है उतनी ही अपने आपको भी एक आदर्श ढांचे में ढाल कर रखने की जरूरत भी होती है. बच्चे सिर्फ वह नहीं देखते हैं जो आप उन्हें समझाते हैं बल्कि वे वह भी देखते हैं जो आप उनको अपने कार्यों के द्वारा दिखाते हैं. अपने व्यवहार को भी संयत रखने की बराबर जरूरत होती है.
मेरी एक परिचित के घर में उनके मायके वाले अक्सर ही आते रहते हैं और कभी बीमार होने पर यहाँ पर रुके भी रहते हैं. लेकिन उनकी सास-ससुर अगर आ जाते हैं तो उनका प्रयास रहता है कि वह कुछ दिन बाद देवर या जेठ के घर चले जाएँ. बच्चे इस बात को बहुत ही बारीकी से नोटिस में लेते रहे. एक बार उनके पिता जी आये उनको दमे की बीमारी थी.
वह कई महीने तक रहे और एक दिन उनकी बेटी ने कह दिया - मम्मी जब दादी यहाँ रहती थी और उनको खांसी आती थी तो आप कहती थीं कि इससे इन्फेक्शन लग सकता है और अब नाना जी के रहने से कोई इन्फेक्शन नहीं हो रहा है.
उन लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि उनकी अपनी बेटी जिसे वे संस्कार दे रहे हैं और अपनी बातों पर कभी ध्यान नहीं देते हैं कि हम क्या कर रहे हैं? उस बच्ची के कथन ने उन्हें आइना दिखा दिखा दिया. मेरे विचार से अगर हम अच्छे संस्कारित बच्चों की उम्मीद करते हैं तो हमें अपनी ओर भी ध्यान देना उतना ही जरूरी होता है.
ऐसी कहानी तो बहुत सुनी हैं और देखा भी है कि अगर घर में बच्चे अपने माता पिता को जैसा करते हुए देखते हैं वैसे ही करने कि उनकी सोच बनती है. नहीं मालूम ये कथा है लेकिन एक लघु कथा में पढ़ा था --
एक बच्चे के दादा जी का निधन हो गया तो उनके सारे समान को पिता ने घर से बाहर फ़ेंक दिया , बच्छा ये सब देखता रहा और बाहर जाकर उस कटोरे को उठा लाया जिसमें उसकी माँ दादा जी को खाना देती थी. जब उसके पिता ने देखा तो उससे पूछा - ये क्यों उठा कर लाये हो? इसको फ़ेंक दो न.'
'नहीं पापा जब आप बूढ़े हो जायेंगे न तब हम भी तो आपको इसी में खाना देंगे. इसी लिए उठा लाया.'
ये भी हमें कुछ सबक दे जाती है. देखने में बहुत छोटी सी बात है लेकिन कितनी गहराई से इसको सोचा जा सकता है और इसके परिणाम को सोच कर देंखें तो हमें यह बता जाता है कि हमारा व्यवहार ही बच्चों को कुछ सिखा जाता है.
मेरे एक मित्र बड़े परमार्थी हैं , उन्होंने कभी किसी भी जरूरतमंद को निराश नहीं किया. एक बार वे कुछ आर्थिक परेशानी में थे और उनकी बहन बीमार पड़ी , गंभीरता की स्थिति में बहन को उनके साथ की जरूरत महसूस हुई , उसने कहा कुछ भी नहीं लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें सहायता करनी चाहिए. उन्होंने अपने घर में बात की. उनकी बच्ची अपनी गोलक उठा कर लायी उसमें जामा किये हुए २००० रुपये पिता को दिए और कहा कि आप बुआ को ये दे दीजिये मेरे पास तो बेकार ही पड़े हैं न, उनके काम आ जायेंगे. '
ये सब चीजें सिखाने से नहीं आती हैं बल्कि बच्चों के द्वारा ग्रहण करने की होती हैं. जो हम उन्हें अपरोक्ष रूप से दिखाते हैं. कुछ प्रतिशत की बात छोड़ दें तो बच्चे घर से ही ग्रहण करते हैं और वही अपने जीवन में उतार लेते हैं. हमें तो बच्चों को सुसंस्कृत बनाने के लिए खुद को भी संयमित और सुसंस्कारित होने की जरूरत होती है. इसी लिए कहा जाता है कि बच्चे कोटि स्लेट की तरह से होते हैं और कुछ हम खुद लिख देते हैं और कुछ वे खुद ग्रहण कर लेते हैं . बच्चों के बिगड़ने पर हम उन्हें दोष नहीं दे सकते हैं. अपने गिरेबान में अगर खुद ही झांक कर आकलन कर लें तो बहुत अच्छा होगा न किसी को दोष देंगे और न कोई दोषी होगा.